Innovation/नवीकरण

Innovation

Everyone talks about innovation today. But what is innovation? Innovation means finding of a new idea. That doesn’t mean it is absolutely new. The purpose of innovation should be problem solving. Innovation must bring a difference in the lives of people and make their lives simple. Even this can be termed as innovation.

When someone faces a problem, the underlying solution contains potential innovation. In fact, innovation is born out of problems. It is not necessary that you need to be highly educated to be innovative. The ability to solve social problems gives birth to innovation. Innovation becomes more probable when the problem relates to the self and near ones.

There are four aspects of innovation:
1. Change
2. Inquisitiveness
3. Determination
4. Utility

The mindset to change is the foundation of innovation. Things change in accordance with time, place and situation. So, students must understand that what we have today was not there before and will not be there in the coming days. The tendency to bring change in place, time and situation results in innovation. Therefore, change is the first step towards innovation.

The second aspect of innovation is inquisitiveness which means the attitude of why, how and where. Innovation will not follow if students do not seek answers to these questions. Intellect develops only when such questions arise. In fact, questions are building blocks of an innovative mind. Questions accelerate our intellect, develop our thoughts and inspire us towards new possibilities. To inculcate inquisitiveness in students, we need to train their minds to be disciplined. Positive thinking should become the attitude of students. Today, students either fear to ask questions or they do not have questions. Students also hesitate to ask questions due to compulsions of English medium education. Not being able to ask questions, students fail to identify their scientific and innovative thinking potential. We need to connect students to their inner inquisitiveness with scientific and logical thought process, the result of which will be innovation.

Attempts at innovation may many times lead to failure. But we must always learn new lessons from our failed attempts. Our every effort bridges the gap to innovate. Hence, we should not hesitate to try again and again. It is found that 80% of people drop out during the last phase before success. Even a soft rope can create a mark on a hard rock by repeated rubbing on the rock. Therefore, repeated attempts are the key to innovation.

The fourth aspect of innovation is utility. Whenever you seek a solution to a problem or find a new idea, its utility in society is very important. Innovation comes into practice only by its utility in day-to-day life. At the same time, the impact of innovation must be presented to people in the right manner. If people are unaware of the innovative solution, the purpose of innovation is lost. However, before acceptance by people, innovative solutions must be well proven. We must be equipped with necessary resources to prove the innovation. We also need to have courage to apply it in society. If we fail to present it to people in the right manner, somebody may pirate it and take away the credit, as often seen in history.

It is not necessary that innovation should solve large scale problems. Sometimes, solutions to small problems also result in innovation. When moral values, vision and commitment drive innovation, it always benefits society. Consequently, such innovations are not driven out of commercials alone and often benefit society.

Sometimes, innovations emerge out of common problems of life also. Mansukhbhai Prajapati is a classic example of this. He found that vegetables decay due to heat and refrigerator technology is too expensive. He thus innovated and created a natural way of cold storage, which is cheap and replicable. It helped a lot of poor people to store vegetables. Mansukhbhai was honoured at many places. Thus, our curriculum should be applied in a way that students become aware of environmental issues and their scientific temperament is enhanced.

We want to request you on behalf of G-Life that you can help students become innovative in their day-to-day life.

नवीकरण

आज के दौर में हर कोई innovation, innovation के नाम की रट लगा रहा है | तो आखिर यह innovation या नवीकरण है क्या? नवीकरण इस शब्द में ही इसका अर्थ छुपा है । नवीकरण याने किसी नयी बात की खोज। लेकिन यह जरूरी नहीं की आपकी खोज सच में एकदम नयी और दुनिया से अपरिचित हो । नवीकरण का मुख्य हेतु होना चाहिए कि इसके अनुसरण से समाज के लोगों को किसी समस्या का हल मिले । आपकी युक्ति और कार्य से यदि किसी एक भी व्यक्ति का जीवन सरल होता है या उसे कार्य करने मे सहजता प्राप्त होती है। तो उसे भी हम नवीकरण की उपमा दे सकते है

जब भी कोई व्यक्ति किसी समस्या का सामना करता है, तब वह उस समस्या का जो भी समाधान खोजता है उसमें नवीकरण समाया होता है । नवीकरण का जन्म ही किसी समस्या के कारण होता है । यह जरूरी नहीं कि किसी नाविन्यपूर्ण खोज के लिए आप उच्च शिक्षित हां या किसी विशिष्ट विषय में पदवी प्राप्त की हो। समाज में उत्पन्न होने वाली समस्याओं पर उपयुक्त और किफ़ायती समाधान ही नवीकरण कहलाएगा । और जब वह समस्या खुद से या किसी अपने निकटवर्तीय से जुड़ी हो तो उसका समाधान निश्चित नए रूप में होता है ।

नवीकरण के साधारणता चार पहलू माने जाएंगे। जैसे परिवर्तनशीलता, जिज्ञासा, दृढ़ता और उपयोगिता परिवर्तनशीलता की मानसिकता ही नवीकरण की नीव काही जा सकती है | समय, स्थिति और स्थान के अनुसार चीजें बदलती ही रहती हैं | इसलिए विद्यार्थी यह सोच ले कि जो आज है, वह बीते कल नहीं था। और आते कल नहीं रहेगा । जिस परिस्थिति, समय और स्थान से विद्यार्थी परिचित है उसमें परिवर्तन लाने की इच्छा जब विद्यार्थी के मन में जगती है तब वह परिवर्तन कि खोज में निकलता है और उसका फल उसे नवीकरण के माध्यम से मिलता है । इसीलिए परिवर्तनशीलता को नवीकरण का पहला कदम कहा जाएगा।

नवीकरण का दूसरा अंग है जिज्ञासा, याने क्यों, कैसे, कहाँ?, यह विचार करने की प्रवृति | नवीकरण की शुरुवात विद्यार्थियों में तब तक नहीं होगी, जब तक हम उन्हें प्रश्न पूछने की या प्रश्नों के हल ढूँढने की पूरी छूट नहीं देते | किसी भी व्यक्ति के मन में जब तक कोई सवाल नहीं आता, तब तक उसकी बुद्धि कार्यशील नहीं होती । प्रश्न निर्माण होना ही सक्रिय बुद्धि का लक्षण है । प्रश्नों के निर्माण होने से हमारे बुद्धि को गतिशीलता मिलती है, हमारा वैचारिक विकास होता, है और फिर हम किसी नयी खोज की दिशा में कार्यरत होते है । विद्यार्थियों में प्रश्न पूछने की वृति जगाने के लिए हमें उनके बुद्धि को अनुशासित करना

होगा । नवीकरण के लिए विद्यार्थियों के मन और बुद्धि में सदेव सकारात्मक विचारधारा के लिए प्रोत्साहित होना चाहिए। आज के विद्यार्थी या तो प्रश्न करना भूल गए है, या वे प्रश्न करने से डरते हैं । इसका एक कारण यह भी हो सकता कि शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी होने से विद्यार्थी प्रश्न पूछने से हिचकिचाते हैं | खुद से या किसी और से प्रश्न नहीं करने की वजह से विद्यार्थी अपनी वैज्ञानिक वृति को एवं अपने अंदर छूपी वैचारिक क्षमता को नहीं पहचान पा रहे हैं | इसीलिए हमें उनको अपनी वैचारिक शक्ति और वैज्ञानिक वृति से परिचित कराना चाहिए, फिर उनका हर विचार नवीकरण की दिशा में बढ़ता जाएगा ।

नवीकरण के मार्ग पर कई बार असफलता भी आ सकती है, लेकिन इन असफल प्रयासों से हमें निरंतर कुछ नई सीख लेनी चाहिए । हमारे द्वारा किया गया हर एक प्रयास हमें अपनी खोज के एक कदम नजदीक ले जाता है । इसलिए हमें बार बार प्रयास करने से नहीं हिचकिचाना चाहिए । ऐसा पाया गया है की 80% लोग सफलता के आखरी पड़ाव तक पहुंच कर रूक जाते हैं। किसी पत्थर पर भी, अगर आप साधारण सी रस्सी से बार-बार घिसें तो उसपर निशान पड़ जाता है। तो नवीकरण की सही कुंजी है निरंतर प्रयास करते रहना।

नवीकरण का चौथा पहलू है उसकी उपयोगिता | जब भी आप किसी समस्या का समाधान खोजते हो, या किसी प्रक्रिया का नया प्रयोग करते हो, तो समाज में उसकी कोई उपयोगिता का होना बहुत महत्वपूर्ण होता है । किसी भी नयी खोज को मान्यता तब ही मिलती है जब उसका उपयोग दैनिक जीवन में अनुसरण करने के लिए हो सकता है । नवीकरण के परिणाम को मान्यता प्राप्त करने के लिए उसे लोगों के समक्ष सही पद्धति से प्रदर्शित करना भी उतना ही जरूरी होता है । यदि कोई नयी खोज समाज के सामने सही तरह से नहीं रखी गयी तो लोग या तो उसे अपनाएँगे नहीं या उसका महत्व कम हो जाएगा । लोगों द्वारा अपनाने के लिए पहले हमें अपने नवीकरण को सिद्ध भी करना होगा और उसे सिद्ध करने के पूरे साधन हमारे पास होने चाहिए | उसके बाद हम में साहस होना चाहिए कि हमने जो हल ढूंढा है, उसको हम किस तरह से लागू करा सकते हैं। हम अगर सही तरह से पेश नहीं कर सके, या लागू नहीं कर सके तो हमारे नवीकरण का अनुसरण कोई और कर सकता है, और वह उसका श्रेय ले सकता है । इतिहास में ऐसा कई बार हुआ है ।

यह जरूरी नहीं की नवीकरण हर वक्‍त किसी बहुत बड़ी समस्या का हल लेकर आये | कभी-कभी किसी साधारण समस्या के हल में भी नवीकरण छुपा होता है । यदि नवीकरण को अगर नैतिकता, दूरद्ृष्टि और निष्ठा का साथ मिल जाए तो उसका परिणाम सामाजिक तौर पर कारगर होता है । इस तरह नवीकरण का व्यवसायीकरण नहीं होता और उसका पूर्ण लाभ समाज के हर व्यक्ति तक पहुँचता है ।

नवीकरण की खोज कभी-कभी दैनिक जीवन में आने वाली समस्यों से भी शुरू होती है, जेसे गुजरात के मनसुखभाई प्रजापति । जब उन्होंने देखा कि गर्मी के कारण सब्जियाँ खराब हो रही हैं और जो आधुनिक शीतयंत्र (रेफ्रिजरेटर) है, वे बड़े महंगे हैं। तब उन्होंने मिट्टीकूल नामक किफायती और गुणवत्तापूर्ण शीतयंत्र का खोज लगाया, जिसकी किंमत काफी कम है और उसे मान्यता भी मिल गयी । उनके इस नवीकरण से गरीब लोगों को भी सब्जियाँ और अन्य खाद्य पदार्थों को ज्यादा दिन रखने का साधन मिल गया । मनसुखभाई के इस खोज के लिए उन्हें कई जगह सम्मानित भी किया गया । इस तरह पाठ्यक्रम में ऐसे छोटे-छोटे प्रयास हों, जिससे बच्चें अपने आस पास के वातावरण के बारे में जागरूक हों और उनके अंदर छुपी वैज्ञानिक परवृति को गतिशीलता मिले |

जी लाइफ (G-LIFE) के माध्यम से हम आपसे निवेदन करना चाहते हैं आप विद्यार्थियों में इस तरह के सामान्य कार्यों में नवीकरण शोधने की प्रवृति विकसित करें।

नवीकरण

सध्याच्या स्पर्धात्मक युगात प्रत्येक व्यक्तीला नेहमी काहीतरी नवीन,काहीतरी वेगळ हव असत, म्हणजेच “नवीनीकरणाचे” खूप महत्व आहे. हे “नवीकरण” नक्की आहे तरी काय. नवीकरण या शब्दातच याचा अर्थ दड़लेला आहे. नवीकरण म्हणजे कुठल्यातरी नवीन वस्तुचा, कार्यपद्धतिचा किंवा तंत्रज्ञानाचा शोध लावणे. पण हे आवश्यक नाही की तुमचा शोध खरोखरच नवीन आहे. नवीकरनाचा मुख्य हेतु असा आहे की याच्या अनुकरनाने समजातील लोकांच्या अडचणी सोडवल्या जातील. आपल्या युक्तिमूळे एखाद्या व्यक्तिचे जरी काम सोपे होत असेल किंवा कार्य पद्धती सोपी होत असेल तर ती युक्ति नवीन ठरू शकते.

जेव्हा एखादी व्यक्ती एखाद्या समस्येला सामोरे जातो, तेव्हा ती व्यक्ति त्या समस्येच जो समाधान शोधते, त्यामध्ये नवनिर्माण समावलेले असते. नवीकरण हे कुठल्यातरी समस्येतूनच जन्माला येत असते. हे आवश्यक नाही की एखाद्या नवीन शोधासाठी आपण उच्च शिक्षित किंवा एखाद्या विशिष्ट विषयामध्ये पदवी प्राप्त केलेली असावी. समाजात निर्माण होनार्या समस्येवर योग्य आणि सर्वानां परवडेल असे समाधान शोधने म्हणजेच नवीकरण होय. जेव्हा ती समस्या स्वत:शी किंवा कोणीतरी आपल्या जवळच्याशी संबन्धित असते तेव्हा त्याचे समाधान निश्चितच नवीन असते.

नवीकरणाचे साधारणत: चार अंग आहेत, जसे की परिवर्तनशीलता, जिज्ञासा, दृढता आणि उपयुक्तता.

परिवर्तनाची मानसिकताच नूतनीकरणाचा पाया असू शकते. वेळ आणि परिस्थिथिनुसार बदल हे घडत असतात. त्यामूळे विद्यार्थ्यांनि हे समजून घेतल पाहिजे की जे आज आहे ते काल नव्हत आणि उद्या पण राहणार नाही. परिस्थिति, अजूबाजूचे परिसर आणि काळ यापैकी ज्याच्याशी विद्यार्थी परिचित आहे त्यात बदल गडवून आणण्याची इच्छा जेंव्हा त्याच्या मनात निर्माण होते तेंव्हा तो परिवर्तनाच्या मार्गावर पुढे जातो आणि त्याचाच परिणाम त्याला नवीकरणाच्या रूपात मीळते. म्हणून परिवर्तनशीलतेला नवीकरणाची पहिली पायरी म्हणता येईल.

नवीकरणाचा दूसरा अंग आहे जिज्ञासा, म्हणजेच असे का?, कसे?, कधी? आणि कुठे?. यासारखे प्रश्न विचारण्याची प्रवृत्ति निर्माण करणे. विद्यार्थ्यांना प्रश्न विचारण्याची किंवा प्रश्नांची उत्तरे शोधण्याची पूर्ण सूट दिल्याशिवाय त्यांच्या कडून नूतनीकरणाची सुरूवात होणार नाही. जोपर्यंत कोणताही प्रश्न विद्यार्थ्यांच्या मनात येत नाहीत तोपर्यंत त्याची बुद्धिमत्ता कार्यशील होत नाही. प्रश्न निर्माण होणे हे सक्रिय बुद्धिचे लक्षण आहेत. प्रश्न विचारल्याने विद्यार्थ्यांची बुद्धी गतिशील होते, त्यांचे वैचारिक विकास होते आणि मग ते कोणत्याही नवीन शोधाच्या दिशेने काम करतात. विद्यार्थ्यांमध्ये प्रश्न विचारण्याची प्रवृत्ति जागृत करण्यासाठी आपल्याला त्यांच्या बुद्धीला शिस्त लावणे आवश्यक आहे. नूतनीकरणासाठी नेहमी विद्यार्थ्यांच्या मनात आणि डोक्यात सकारात्मक विचारांना प्रोत्साहन द्यावे. आजचे विद्यार्थी एकतर प्रश्न करणे विसरले आहेत किंवा प्रश्न विचारण्यास त्यांना भीती वाटते. स्वतःला किंवा इतर कोणालाही प्रश्न नविचारण्यामुळे विद्यार्थ्यांना त्यांची वैज्ञानिक प्रवृत्ति आणि स्वत: मध्ये असणारी वैचारिक क्षमता ओळखता येत नाही. म्हणूनच आपण त्यांना, त्यांच्या वैचारिक सामर्थ्यासह आणि वैज्ञानिक प्रवृत्तिशी परिचित केले पाहिजे, तर त्यांचा प्रत्येक विचार नूतनीकरणासाठी असेल. नवीकरणाच्या मार्गावर अपयश देखील येऊ शकते, पण या अयशस्वी प्रयत्नांसह, सतत काहीतरी नवीन शिकले पाहिजे अशी विध्यार्थ्यांची मानसिकता बनवली पाहिजे. प्रत्येक अयशस्वी प्रयत्न नवीन शोधाच्या कड़े जाण्याची एक पायरी आहे हे विध्यार्थ्याना समजले पाहिजे. म्हणून पुन्हा, पुन्हा प्रयत्न करण्यास संकोच करू नये. बर्याच वेळा असे दिसून येते की 80% लोक यशस्वी होण्याच्या शेवटच्या टप्प्यात पोहोचून थांबतात. अगदी दगडांवर, सुद्धा वारंवार दोरीने घासले तर ते खुण पडते, म्हणजेच नवीकरनाची खरी किल्ली आहे निरंतर प्रयत्न.

नवीकरणाचा चौथा अंग आहे उपयुक्तता. जेंव्हा कुठल्याही समस्येचे निवारण शोधले जाते किंवा एखादी नवीन कार्य प्रणाली शोधली जाते, तेंव्हा ते समजाला उपयुक्त असणे फार महत्वाचे असते. कोणताही नवीन शोध केवळ तेव्हाच ओळखला जातो जेव्हा तो रोजच्या जीवनामध्ये वापरला जातो. कुठल्याही नवीन शोधाला लोकांची मान्यता मिळण्यासाठी त्याचे योग्य प्रकारे प्रदर्शन करणे तितकेच महत्वाचे आहे. समाजासमोर नवीन शोध योग्य प्रकारे नमांडल्यास लोक त्याचा स्वीकार करणार नाहीत किंवा त्याचे महत्त्व कमी केले जाईल. लोकांकडून स्वीकारण्यासाठी, प्रथम नूतनीकरण सिद्ध करणे आणि ते सिद्ध करण्यासाठी सर्व माध्यम एकत्र करणे आवश्यक असते. नवीन शोध सिद्ध करण्याचे साधन पण विद्यार्थ्यांनि मिळविले पाहिजे. जर एखादा शोध योग्यरित्या सादर किंवा लागू करू करता आला नाही तर इतर कोणी त्याचे अनुसरण करून श्रेय घेऊ शकते.

कुठलाही शोध हा खूप मोठाच असला पाहिजे असे नाही. कधीकधी एका सामान्य समस्येच्या समाधानात सुद्धा नूतनीकरण लपलेले असते. नूतनीकरण जर नैतिकता, दूरदृष्टी आणि निष्ठा यांच्याशी निगडीत असेल तर त्याचे परिणाम सामाजिकरित्या प्रभाव वाढते. अशा प्रकारे नूतनीकरणाचे व्यावसायीकरण होत नाही आणि त्याचा पूर्ण फायदा समाजातल्या प्रत्येक व्यक्तीस होतो.

कधी कधी नव्या वस्तुंचा शोध दैनिक जीवनातून पण लागतो. जसे की गुजरात चे मनसूख़भाई प्रजापति, जेंव्हा त्यांच्या लक्षयात आले की उष्णतेमूळे फळांचे आणि भज्यांचे खूप नुकसान व्हायचे. बाजारात भेटणारे शीतयंत्र (Refrigerator) खूप महाग होते म्हणून त्यांनि मिट्टिकूल नावाचे एक स्वस्त आणि दर्जेदार शीतयंत्र शोधले, ज्याची किंमत अतिशय कमी आहे आणि त्याला मान्यता पण मिळाली आहे. या नूतनीकरणामुळे, गरीब लोकांना देखील भाज्या व इतर पदार्थ टिकवून ठेवण्याचे साधन मिळाले. मनसुखभाईंच्या शोधासाठी त्यांना अनेक ठिकाणी सन्मानित करण्यात आले. अशाप्रकारे, अभ्यासक्रमामध्ये असे लहान प्रयत्न केले जावेत मुलांच्या आसपासच्या वातावरणाबद्दल मुलांना जागरुक केले पाहिजे आणि त्यांच्यातील वैज्ञानिक प्रवृत्तिला गतिमान करावे

जी-लाइफद्वारे (G-LIFE), आम्ही अशी विनंती करू इच्छितो की आपण अशा सामान्य प्रतोगाद्वारे विद्यार्थ्यांमध्ये संशोधनाची पुनरावृत्ती करण्याची प्रवृत्ती विकसित करावी.